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महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग मानव समाज का उत्थान सहस्त्रों वर्षों से कर रहा है। 21वी शताब्दी के आरंभ में इस दिशा में एक महान परिवर्तन हुआ। योगासन और प्राणायाम के क्षेत्र में भारत और भारत से बाहर सात समुद्र पार, इंग्लैंड, अमेरिका, रूस और चीन आदि देशों में प्राणायाम लोकप्रिय होने लगा। इस क्रांतिकारी परिवर्तन के जनक हैं योग ऋषि स्वामी रामदेव। जन जन तक अष्टांग योग के चौथे चरण, प्राणायाम को पहुंचाने का काम निर्विघ्न और सतत रूप से चलता रहे, इसके लिए बाबा रामदेव ने हरिद्वार दिल्ली राजमार्ग पर पतंजलि योगपीठ की स्थापना की। बड़ी संख्या में योग प्रशिक्षक तैयार हो रहे हैं जो देश विदेश में सामान्य नर नारी को उन्ही की भाषा में योग और प्राणायाम सिखाएंगे। यह कार्य इतने बड़े स्तर पर संभवत: पहली बार किया जा रहा है और इससे मानव मात्र लाभांवित हो रहा है।
अभी हाल में स्काटलैंड समुद्र तट के निकट एक छोटा द्वीप कैमरी आईलैंड – वहां रहने वाले भारतीय मूल के परिवार ने स्वामी रामदेव के योग संस्थान को उपहार स्वरूप दिया। उस स्थान का नया नाम स्वामी जी ने दिया – शांति द्वीप। वैदिक यज्ञ और योग के माध्यम से, उस क्षेत्र के स्थानीय जन लाभ उठा रहे हैं। प्राणायाम के माध्यम से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का स्तर दिन प्रतिदिन ऊंचा होता जा रहा है। जिन लोगो का वज़न आवश्यकता से कहीं अधिक था और इससे वे विभिन्न रोगों से पीड़ित थे – बाबा रामदेव के प्राणायाम अभियान से उन्हें आशातीत लाभ हुआ और दवाइयां उनसे दूर हो गईं।
क्रांतिकारी परिवर्तन का मूल
अभी हाल में आस्था टी वी चैनल के लिए स्वामी रामदेव का साक्षातकार करते हुए मैनें प्रश्न किया कि प्राणायाम के एकाएक देश विदेश में इतना लोक प्रिय होने का रहस्य क्या है। स्वामी जी ने उत्तर दिया कि इस क्षेत्र में वो 1995 से कार्य कर रहे हैं और पिछली कई शताब्दियों की तुलना में 21वीं शताब्दी में प्राणायाम के जन जन तक पहुंचने के मूल में है इस प्रक्रिया का सरलीकरण। पिछली कई शताब्दियों में योग गुरू एवं आचार्य योग ज्ञान एवं व्यावहारिक अभ्यास को आम आदमी से दूर रखते थे और इस बात पर बल देते थे कि बिना गुरू का सानिध्य पाए यदि कोई इस क्षेत्र में जाएगा तो लाभ के स्थान पर अनिष्ट हो सकता है। इससे लोगों के मन में भय समा गया था और उन्होनें इस मार्ग पर चलना ही छोड़ दिया। स्वामी रामदेव नें भ्रांतियों का उन्मूलन किया और प्राणायाम के बारे में उपजे अंधविश्वासो का खंडन करते हुए कहा कि भली भांति प्राणायाम प्रक्रिया सीखने के बाद स्वंय अभ्यास करते रहिए। इससे लाभ ही लाभ है हानि नही। इस वार्तालाप के दौरान सरलीकरण की इस प्रक्रिया की तुलना स्वामी दयानंद सरस्वती के वेदों की ओर लौट चलो अभियान से की गई। 19वीं शताब्दी से पूर्व स्वार्थी एवं समाज विरोधी तत्वों ने ईश्वीरय ज्ञान वेद को अपने घरों की कोठरियों में ताला बंद कर दिया और स्त्रियों तथा समाज के एक बड़े वर्ग को वेद पाठ से वंचित कर दिया। इससे अंधकार फैल गया। स्वामी दयानंद ने वेदो का हिंदी भाष्य कर के उस ज्ञान को आम आदमी तक पहुंचाया और बल पूर्वक कहा कि वेद मंत्र स्वयं कहता है कि वेद पाठ का अधिकार सार्वजनिक है। गुरूकुल के स्नातक के रूप में, स्वामी रामदेव नें इस ज्ञान बांटने और सरलीकरण की प्रक्रिया को उत्तराधिकार के रूप में पाया और जन जन तक पहुंचा कर अपने को ऋषि ऋण से उऋण कर लिया।
प्राणायाम से भारत स्वाभिमान
भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग अब योगासन और प्राणायाम के माध्यम से अपने तन, मन और मस्तिष्क में ऊर्जा उत्पन्न कर रहा है। प्रात: काल योगासन और प्राणायाम कर के जो ऊर्जा उत्पन्न हो रही है उसका उपयोग नित्य प्रति के जीवन में करने के अतिरिक्त लोक कल्याण के लिए भी किया जा सकता है। इस समय विभिन्न कारणों से हमारा भारत जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर मानसिक रूप से बंटा हुआ है। इससे देश का संगठन सबल नहीं हो रहा है और हमारे शत्रु इसका फायदा उठा कर हमारे देश को तोड़ने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। सीमा पर अनेक शत्रु एक दूसरे से संधि कर भारत विरोधी कार्य कर रहे हैं। इस स्थिति में क्या हम भारत वासी उन्हें असहाय हो कर मूक भाव से देखते रहें। आवश्यकता है निश्चय के साथ शत्रु शक्तियों का विरोध किया जाए। यह तभी संभव है जब हम अपने देश पर गर्व करें और देश के स्वाभिमान के लिए और देश के सुरक्षा के लिए अपने निहित स्वार्थों का त्याग करें।
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, देश वासियों में वैचारिक जागरूकता की आवश्यकता है। स्वामी रामदेव नें अपने योग संस्थान के माध्यम से इस दिशा मे सक्रिय कदम उठाया है। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना की है और स्वयं भी अपनी जन सभाओं में लोगो को प्रेरणा दे रहे हैं। जब जन जन में देश के लिए कार्य करने का और यदि आवश्यकता हुई तो तन, मन और धन न्योछावर करने का निश्चय जाग जाएगा तो भारत एक सबल राष्ट्र के रूप में उठ खड़ा होगा। यह कार्य अब हर उस व्यक्ति का कर्तव्य होगा जिसमें देश प्रेम की भावना प्रबल है। देश के उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में और विभिन्न मत मतांतर के मानने वालों के बीच प्रचार करके देश प्रेम की अलख जगाने की आवश्यकता है। स्वामी रामदेव स्वयं आशावान हैं और उनके साथ काम करने वाले व्यक्तियों में भी आशा का संचार है। आवश्यकता इस बात की है कि समाचार माध्यमों के द्वारा हम इस देश प्रेम की भावना को कोने कोने तक पहुंचाएं और जहां कार्यकर्ता स्वयं नहीं जा सकते वहां टी वी, रेडियो और इंटरनेट के माध्यम से जन मानस जागृत करें। वैचारिक क्रांति का आधार है मानसिक जागरूकता जिससे प्रेरणा मिलेगी कर्म करने की और क्रियाशील बने रहने की।
व्यवस्था परिवर्तन
भारत को एक समृद्ध देश बनाने के लिए राजतंत्र के समर्थन की भी आवश्यकता होगी। ऐसा भी संभव है कि एक निर्बल राजतंत्र इस दिशा में निश्चय के साथ कोई कार्य करने की स्थिति में न हो। राजनेताओं में कोई ऐसी इच्छा जागृत न हो जैसा पहले हो भी चुका है। इस स्थिति में वर्तमान व्यवस्था को परिवर्तित करना आवश्यक हो जाएगा। सामाजिक व्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था, न्यायिक और शिक्षा व्यवस्था – ये सभी मिल जुल कर एक ऐसा चित्र प्रदर्शित कर रहे हैं कि जैसे हमारा भारतीय समाज अंदर से खोखला हो रहा है। शासन तंत्र में अभी भी मंत्री एवं अधिकारी जनता से दूर बंद कमरों में बैठते है और सामान्य जनता की करूण कथा सुनने के लिए कोई समय नही देते। समाज का सक्षम वर्ग पुराने उपेक्षित वर्ग को अपने से दूर रखता है और प्रगति का फल उन तक नहीं पहुंचने देता। हमारी शिक्षा व्यवस्था जैसी अंग्रेज़ो के समय में थी वैसी ही निर्विघ्न चली आ रही है। मैकोले की शिक्षा नीति को दोष देते रहने के बावजूद हम उसी की चलाई गई शिक्षा नीति को अपनाते रहे हैं और परिवर्तन करने से हिचकते रहे हैं। विश्वविद्यालयों के स्नातक कई बार नौकरी नही पाते और मज़दूरी कर अपना पेट पालते हैं। न्याय व्यवस्था में ज़िला स्तर के न्यायालयों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक लाखों और करोड़ों मुकदमें कई वर्ष बीत जाने पर भी सुने नहीं जाते निर्णय की कौन कहे। सबसे घिनौनी बात तो यह है कि भ्रष्टाचार हर तंत्र में ऐसा घर कर गया है कि समाज को अंदर से दीमक की तरह खाए जा रहा है।
शांतिमय क्रांति
इसका एक ही उपाय है कि आज के इस तंत्र को, आज की इस दीमक लगी व्यवस्था को हम बदल दें। स्वामी रामदेव शांतिमय क्रांति के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि हम भारत स्वाभिमान अभियान जैसी वैचारिक क्रांति के माध्यम से संसद में ऐसी विचारधारा के सदस्य भेजेंगे जो संविधान में परिवर्तन करेंगे। नया संविधान लाएगा नया तंत्र – जिसमें राजतंत्र कार्य करेगा सामान्य जन के कल्याण के लिए। उन्हें आशा और विश्वास है कि वो दिन दूर नहीं जब शांतिमय क्रांति के माध्यम से व्यवस्था परिवर्तन संभव होगा और आम आदमी के मुख पर एक बार फिर मुस्कान आ सकेगी।
ब्रिगेडियर चितरंजन सांवत, वी.एस.एम
Sunday, May 29, 2011
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