सार्वदेशिक सभा के अधिकार को लेकर विवाद कई दशकों से चल रहा है | और आज भी चल रहा है | ३-४ गुट अपने आप को सर्वाधिक योग्य बता रहा है | कोई किसी की नहीं सुनता | लगता है कि यह विवाद जल्दी शांत होने वाला नहीं है |
महर्षि दयानंद होते तो ऐसे अर्थहीन संगठन को कभी का विसर्जित कर देते | अपने प्रयोजन को सिद्ध करने में विफल रही स्वयं द्वारा स्थापित पाठशालाओं को उन्होंने तत्काल बंद कर दिया था | व्यर्थ की - नाम मात्र की - संस्थाएं चलाते रहना उनके चिंतन से विपरीत था |
स्वामी अग्निवेशजी आर्य समाज के संगठन को कोई स्थिरता प्रदान नहीं कर पाए हैं, और न ही उनको भविष्य में कभी सर्व स्वीकृति मिलने वाली है | वे निरंतर विवादास्पद बने रहे हैं और आज भी आर्य समाज (और देश) के अधिकांश लोग उन्हें संशय से ही देखते हैं | उनकी प्रसिद्धि और व्यक्तित्व आर्य समाज को बल प्रदान करने में विफल ही रहा है | अगर वे आर्यसमाज और स्वामी दयानंद के मिशन के प्रति समर्पित हैं, तो हम यही कहेंगे कि उनका यह समर्पण हमारी समझ में नहीं आता | श्री सत्यव्रत सामवेदीजी (जयपुर), श्री डो० वेदप्रताप वैदिकजी, स्वामी आर्यवेशजी, स्वामी दिव्यानंदजी (हरिद्वार), स्वामी विवेकानंदजी (मेरठ), स्वामी सुमेधानंदजी (चंबा), तथा अन्य कई "वेश" नामधारी सज्जन लोग हैं, जो अग्निवेशजी की संस्तुति करते रहते हैं | प्रयोजन होगा अपना-अपना |
एक तरफ स्वामी प्रणवानंदजी, डो० सोमदेवजी, आचार्य वेदप्रकाशजी श्रोत्रिय आदि कुछ लोग हैं, जो सभी गुटों के साथ बराबर दिखाई देते हैं, मगर लगता है कि वे भी एकता करने में असमर्थ हैं |
पवित्र होते हुए भी श्री आचार्य बलदेवजी की भी मर्यादाएं हैं | सार्वदेशिक सभा के नेतृत्व के लिए आज के युग में वे भी योग्य नहीं लगते |
दूसरी ओर अन्य कई अच्छे प्रभावशाली विद्वान महानुभाव हैं, जो प्रशंसनीय सामर्थ्य के धनी हैं - जैसे कि स्वामी सुमेधानंद (राजस्थान), आचार्य आर्य नरेशजी, आचार्य ज्ञानेश्वरजी, आचार्या सूर्यादेवीजी, डो० रामप्रकाशजी, स्वामी सम्पूर्णानंदजी, डो० रघुवीरजी वेदालंकार, श्री उमाकांतजी उपाध्याय, स्वामी विवेकानंद जी परिव्राजक (रोजड), प्रो० राजेन्द्र जिज्ञासु, प्रो० ज्येष्ठजी वर्मन, डो० सुरेंद्रकुमारजी, स्वामी धर्मानंद जी (उड़ीसा) आदि आदि | मगर लगता है कि आर्य समाज के संगठन सम्बन्धी कार्यों में उनमें से कई लोगों को रुचि नहीं होगी |
बड़ी-बड़ी घोषणाएँ करने वाले और आत्म प्रशंसा में अपनी पत्रिकाओं के पृष्ठ व्यर्थ में काले करने वाले तथाकथित नेताओं पर हमारा अब कोई विश्वास नहीं रहा है |
ऐसे में आर्य समाज संगठन का क्या होगा ?
By भावेश मेरजा
Thursday, July 14, 2011
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